गाभिन गाय की बेहतर देखभाल से करे अधिक दूध उत्पादन

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प्रत्येक पशुपालक को गाभिन पशुओ की विशेष देखभाल करनी चाहिए , क्योंकि ब्याने के बाद दूध उत्पादन की मात्रा ओर गाय का स्वास्थ्य इसी पर निर्भर करता है।  गर्भ में पलने वाले बच्चे के विकास के लिए भी गाय के खान पान  एवं रहन -सहन का विशेष प्रबंधन करना आवश्यक है।  गाय का गर्भकाल २७० से २८५ दिन के बिच होता है।  इस दौरान गायों को आवश्यक प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , खनिज व् वासा युक्त आहार की जरुरत होती है।  संतुलित ओर पर्याप्त आहार देने से सेहतमंद बच्चे का जन्म होता है।
गाय की गर्भावस्था उसके दूध उत्पादन के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए इसके दौरान पशुपालकों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

  • कलोर या प्रथम बार गर्भ धारण करने वाली बछिया की उम्र ढाई से तीन वर्ष तक होनी चाहिए।
  • गाभिन पशुओं का आहार संतुलित, आसानी से पचने वाला एवं पौष्टिक होना चाहिए। उनके आहार में हरे । चारे के साथ दाने में प्रोटीन, ऊर्जा, खनिज लवण एवं विटामिन का समावेश समुचित मात्रा में मौजूद रहना आवश्यक है। 
  • गाभिन गाय को ओसतन ३०-३५ किलोग्राम हरा चारा , ३-४ किलोग्राम सूखा चारा, २-३ किलोग्राम दाना , ६०-७० ग्राम खनिज तथा ४०-५०  ग्राम नमक प्रतिदिन देना चाहिए।  यदि पशु को मुख्य रूप से सूखे चारे पर रखना है तो उसे ५-८ किलोग्राम भूसा और ५-१०  किलोग्राम हरा चारा दे और उसके आहार में डेन की मात्रा ३-४ किलोग्राम शामिल करनी चाहिए।  

ब्याने के बाद भी पशु की विशेष देखभाल करें
  • ब्याने के तुरंत बाद पशु को आसानी से पचने  योग्य आहार जैश चोकर, दलिया, हरा चारा, गुड़ का काढ़ा आदि तक देना चाहिए। खिला जा सकता है।
  • ब्याने के बाद उन्हें ताजा , गुनगुना साफ पानी पिलाना चाहिए।  पशु की ताजगी और स्फूर्ति के लिए हल्दी ३० ग्राम , सौंठ १५ ग्राम , अजवाइन १५ ग्राम और गुड़ २५० ग्राम को एक लीटर पानी में उबाल कर दो -तीन दिन तक सुबह और श्याम पिलाना चाहिए। 
  • पशु को ३-४ दिनों तक भारी आहार नहीं  देना चाहिए।  इस दौरान पशु को शीग्र पचने वाला आहार जैसे गेंहू , जो या बाजरा का दलीय गुड़ में मिलकर सुबह शाम ५-७ दिनों तक देना चाहिए।  
  • गाय को कुछ दिनों तक अन्य जानवरो के साथ नहीं छोड़ना चाहिए।  कुछ दिन बीत  जाने के बाद ही सामूहिक चरने हेतु ले जाना चाहिए।
  • लगभग तीन से चार सप्ताह बाद गाय फिर से सामान्य अवस्था में आ जाती है।
दुधारू गाय के ब्याने से दो महीने पहले दूध निकालना बंद कर देना चाहिए, ताकि पशु सूखी अवस्था में आ जाए। सुखाने के बाद जानवर को रोजाना लगभग 1.5 किलोग्राम दाना मिश्रण देना चाहिए। इस विधि को स्टीमिंग–अप कहा जाता है। स्टीमिंग –अप से ब्याने के बाद पशु से अधिकतम दूध उत्पादन होता है तथा यह शारीरिक बढ़वार में भी सहायक है।
 जिन पशुओं में अधिक दूध उत्पादन की क्षमता हो, उन्हें नकारात्मक ऊर्जा संतुलन से बचाने के लिए तथा उनसे अधिकतम दूध प्राप्त करने के लिए व्याने के दो सप्ताह पहले से प्रतिदिन 500 ग्राम सांद्र दाना देना चाहिए। इसे प्रतिदिन 300-400 ग्राम तब तक बढ़ाना चाहिए जब तक जानवर 1 किलोग्राम साद्र दाना प्रति 100 किलोग्राम शारीरिक वजन तक न खाने लग जाए। इसे चैलेंज फीडिंग कहा जाता है। इससे पशुओं में ऊर्जा का संतुलन समान्य बना रहता है और अधिकतम दूध उत्पादन प्राप्त होता है।

ब्याने से पहले गाभिन गाय के राशन में कैल्शियम की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा ब्याने के बाद पशु की आँतों से कैल्शियम का अवशोषण कम हो सकता है तथा पशु को मिल्क फीवर अथवा दूध ज्वर होने की आशंका हो सकती है।

गाभिन गाय के राशन में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन तथा ऊर्जा होनी चाहिए। ऊर्जा की कमी होने से प्रश्न को कीटोसिस नामक बीमारी हो सकती है।

पशु के ब्याने के 15 दिन पहले उसे अन्य प्रशुओं से अलग कर देना चाहिए, जहां जानवर की विशेष
देखभाल हो सके।
एक आदर्श ब्याने वाले कक्ष का आकार 3 मीटर गुणा 4 मीटर होना चाहिए। साथ ही बिछावन की उपयुक्त व्यवस्था भी होनी चाहिए।

इस काल में गाभिन गाय को अन्य जानवरों से चोट लगने की संभावना रहती है तथा अन्य जानवरों से किसी प्रकार के संक्रमण के कारण गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए विशेष आवास और प्रबंधन जरूरी है।

गाभिन पशु को हमेशा साफ-सुथरे वातावरण में रखना चाहिए। साधारण व्यायाम भी कराना चाहिए।
पशु को डराना, धमकाना या परेशान नहीं करना चाहिए। पशु को दौड़ाना नहीं चाहिए। उन्हें गर्मी, सर्दी एवं बरसात से बचाना चाहिए।

प्रसव का दिन निकट आने पर विशेषकर अंतिम दो-तीन दिनों में विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रसव दिन या रात किसी भी समय हो सकता है।


ब्याने के दौरान गाय की देखभाल

  • ब्याने के समय की पहचान गाय के शारीरिक बदलाव और सक्रियता से पता करनी चाहिए। थन का आकार। अचानक बढ़ना, कम भोजन लेना, बेचैनी, एकांत ढंढना, पूंछ के दोनों ओर की मांस पेशियों का ढीला पड़ना और योनि से स्त्राव आदि प्रमुख लक्षण हैं।
  • ब्याने की अवस्था में पशु पालक को दूर से निगरानी करनी चाहिए क्योंकि नजदीक होने से पशु का ध्यान बंट सकता है तथा व्याने में देरी अथवा बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • व्याने से पहले बिछावन बदल देनी चाहिए और प्रयास करके जर्मरहित वातावरण प्रदान करना चाहिए।
  • यदि व्याने में किसी प्रकार की बाधा दिखाई पड़े तो तुरंत सहायता करनी चाहिए।
  • यदि प्रसव पीड़ा की शुरुआत के दो घंटे बाद भी बच्चा बाहर नहीं निकला है तो योनि मार्ग में बच्चा हँसने की संभावना होती है। ऐसी स्थिति में तुरंत नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • आमतौर पर डेरी पशुओं में ब्याने के 4-6 घंटे के अन्दर जेर अपने आप बाहर निकल आती है, परन्तु अगर ब्याने के 12 घंटे के बाद भी जेर नहीं गिरती तो उस स्थिति को जेर का रुकना अथवा 'रिटेंड प्लेसेंटा' कहा जाता है। ऐसी स्थिति में तुरंत नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • जैसे ही और निकल कर गिरे, उसे तुरंत हटाकर कहीं दूर गड्ढे में गाड़ देना चाहिए, अन्यथा कुछ पशु जर को खा लेते हैं, जिसका दुष्प्रभाव पशु के स्वास्थ्य एवं दूध उत्पादन पर पड़ता है। ब्याने के स्थान को फिनाइल घोल से अच्छी तरह साफ कर देना चाहिए।

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निशांत कुमार , शैलेश कुमार गुप्ता , पंकज कुमार जोशी  एवं एस एस  लठवाल
पशुधन अनुसन्धान केंद्र - राष्ट्रिय डेरी अनुसन्धान संस्थान , करनाल

1 comment:

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