1) मिल्क फीवर या सूतक बुखार क्या होता है?
ये
एक रोग है जो अक्सर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे या
दिनों बाद होता है। रोग का कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी।
सामान्यतः ये रोग गायों में 5-10 वर्ष कि उम्र में अधिक होता है। आम तौर पर
पहली ब्यांत में ये रोग नहीं होता।
2) मिल्क फीवर को कैसे पहचान सकते है?
इस
रोग के लक्षण ब्याने के 1-3 दिन तक प्रकट होते है। पशु को बेचैनी रहती है।
मांसपेशियों में कमजोरी आ जाने के कारण पशु चल फिर नही सकता पिछले पैरों
में अकड़न और आंशिक लकवा की स्थिती में पशु गिर जाता है। उस के बाद गर्दन
को एक तरफ पीछे की ओर मोड़ कर बैठा रहता है। शरीर का तापमान कम हो जाता है।
3) खूनी पेशाब या हीमोग्लोबिन्यूरिया रोग क्यों होता है?
ये
रोग गायों-भैसों में ब्याने के 2-4 सप्ताह के अंदर ज्यादा होता है ओर
गर्भवस्था के आखरी दोनों में भी हो सकता है। भैसों में ये रोग अधिक होता
है। ओर इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। ये रोग शरीर में फास्फोरस
तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस तत्व कि कमी होती है
वहाँ चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अतः पशु के शरीर में भी ये कमी
आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है जिनको केवल सूखी
घास, सूखा चारा या पुराल खिला कर पाला जाता है।
4) खुर-मुँह रोग(मुँह-खुर रोग?कि रोक थम कैसे कर सकते है?
इस
बीमारी की रोकथाम हेतु, पशुओं को निरोधक टीका अवश्य लगाना चाहिये। ये टीका
नवजात पशुओं में तीन सप्ताह की उम्र में पहला टीका, तीन मास की उम्र में
दूसरा टीका और उस के बाद हर छः महीने में टीका लगाते रहना चाहिये।
5) गल घोंटू रोग के क्या लक्षण है?
तेज़ बुखार, लाल आँखें , गले में गर्म/दर्द वाली सूजन गले से छाती तक होना, नाक से लाल/।झागदार स्त्राव का होना।
6) पशुओं की संक्रामक बीमारियों से रक्षा किस प्रकार की जा सकती है?
(क)
पशुओं को समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार बचाव के टीके लगवा
लेने चहिये। (ख) रोगी पशु को स्वस्थ पशु से तुरन्त अलग कर दें व उस पर
निगरानी रखें। (ग) रोगी पशु का गोबर , मूत्र व जेर को किसी गढ़ढ़े में दबा
कर उस पर चूना डाल दें। (घ) मरे पशु को जला दें या कहीं दूर 6-8 फुट गढ़ढ़े
में दबा कर उस पर चूना डाल दें। (ड़) पशुशाला के मुख्य द्वार पर ‘फुट बाथ’
बनवाएं ताकि खुरों द्वारा लाए गए कीटाणु उसमें नष्ट हो जाएँ। (च) पशुशाला
की सफाई नियमित तौर पर लाल दवाई या फिनाईल से करें।
7) सर्दियों में बछड़े- बछड़ियों को होने वाली प्रमुख बीमारियों के नाम बताएं।
(क) नाभि का सड़ना (ख) सफेद दस्त। (ग) न्यूमोनिया (घ) पेट के कीड़े (ड़) पैराटाईफाइड़
8) बछड़े- बछड़ियों में पैराटाईफाइड़ रोग के बारे में जानकारी दें।
यह
रोग दो सप्ताह से 3 महीने के बछड़ों में होता है। यह रोग गंदगी और भीड़
वाली गौशालाओं में अधिक होता है। इस के मुख्य लक्षण – तेज़ बुखार, खाने में
अरुचि, थंथन का सूखना, सुस्ती। गोबर का रंग पीला या गन्दला हो जाता है व
बदबू आती है। रोग होते ही पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
9) बछड़ों में पेट के कीड़ों (एस्केरियासिस) से कैसे बचा जा सकता है।
इस
रोग की वजह से बछड़े को सुस्ती, खाने में अरुचि, दस्त हो जाते हैं। व इस
रोग की आशंका होते ही तुरन्त पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
10) पशुओं में अफारा रोग के क्या-क्या कारण हो सकते है।
(क) पशुओं को
खाने में फलीदार हरा चारा, गाजर, मूली,बन्द गोभी अधिक देना विशेषकर जब वह
गले सड़े हों। (ख) बरसीम, ब्यूसॉन , जेई, व रसदार हरे चारे जो पूरी तरह पके
न हों व मिले हों। (ग) भोजन में अचानक परिवर्तन कर देने से। (घ) भोजन नाली
में कीड़ों, बाल के गोले आदि से रुकावट होना। (ड़) पशु में तपेदिक रोग का
होना। (च) पशु को चारा खिलाने के तुरन्त बाद पेट भर पानी पिलाने से।
निष्कर्ष
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